Saturday, April 25, 2009

नई राहें

फासले कम होते नही दरमियान के
ये राहें चली जा रही अहं ज़बरदस्ती,
खात्मा कभी होगा नही इस खलिश का
एक ज़िन्दगी जी जा रही है ज़बरदस्ती।

हुआ हैं मोड़ चुनने का वादा ज़बरदस्ती
न दिल पे है काबू ,हैं न दिमाग दुरुस्त,
इस ज़िन्दगी के साथ बहुत की जा रही है ज़बरदस्ती।

जालिम हैं रहबर ,पर हैं इससे अनजान,
राहें ख़ुद बनाई जा सकती हैं ज़बरदस्ती,
अरमानों की चीख से जागा है ज़मीर,
ज़बरदस्त बरपेगा हंगामा,जो अब की किसी ने ज़बरदस्ती ।
_ताबिश 'शोहदा' जावेद

Sunday, April 19, 2009

धुंदली रौशनी

रातों की तड़प तू क्या जाने ,
धुंदली रौशनी के असली मायने,
है तो पहलु इसका ढलती शाम ,
तो ये लाती भी है उगते सूरज का पैगाम।

Saturday, April 11, 2009

शोहदा

कुछ बातें अनकहीं रह गई
पर लफ्ज़ों की गुंजाईश थी कहा
कुछ नजदीकियां कभी हासिल हुई
पर दूरियों की समझ थी कहाँ

हमारी उम्र की थी नासमझी
चढ़ सका प्यार परवान
हो सका कोई वादा पुख्ता,
पर बिना शक थी मोहब्बत बेपनाह

पा कर रहूँगा अपना प्यार ,
गर एह बार फिर हुआ दीदार।
जो अबकी पाया तो सही ,
वैसे भी होता है अब 'शोहदों' में शुमार
-ताबिश 'शोहदा' जावेद