Saturday, March 7, 2009

ख्वाब नीलाम

वो चश्मा लाकर करोगे क्या ?
जो खुली आँखों को करता है रोशन ,
बंद आँखों को तो वो खोल नही सकता ,
ऐसे चश्मे से तुम्हे दिखेगा क्या ?

जेबघड़ी तुम लाकर करोगे क्या ?
गांधीजी तो जेब में रखते थे ,
तुम्हारी जेब तो खाली ही नही,
बताओ तुम उसे रखोगे कहाँ ?

वो थाली तो तुम बिल्कुल न लाना ,
गाँधीजी तो उसमे भोजन करते थे ,
तुम आदत से मजबूर उसमे छेद कर दोगे ,
बताओ फिर मुहं दिखाओगे क्या ?

हो सके तो उनके ख्वाब
खरीद लाओ,
क्यूंकि ज़मीर तुम्हारा तुम्हे रोक नही सकता ,
इस समान का कया है ले भी आओगे ,
तो फिर सियासत ही करोगे और करोगे क्या ?

-ताबिश 'शोहदा' जावेद




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